1913 में उन्होंने ‘राजा हरिशचंद्र’ नाम की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म बनाई थी. दादा साहेब सिर्फ एक निर्देशक ही नहीं बल्कि एक जाने माने निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे. उन्होंने 19 साल के फिल्मी करियर में 95 फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में बनाईं. दादा साहेब ने अपने फिल्मी करियर में कई फिल्में बनाईं, लेकिन ‘द लाइफ ऑफ क्रिस्ट’ उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट माना जाता है. कहा जाता है कि इस फिल्म को बनाने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी से पैसे उधार लिए थे. वहीं उनकी पहली फिल्म ‘राजा हरिशचंद्र’ को बनाने में उन्हें करीब 6 महीने का वक्त लग गया था. फिल्म में उन्होंने ही हरिश्चंद्र का किरदार निभाया था और फीमेल लीड के लिए किसी महिला के तैयार न होने पर उन्होंने किसी पुरुष से महिला का रोल करवाया था.
हालांकि बाद में उनकी फिल्मों में महिलाओं ने काम किया था. बीबीसी की रिपोर्ट की मानें तो उनकी फिल्म ‘भस्मासुर मोहिनी’ में दो औरतों को काम करने का मौका मिला था. इन महिलाओं का नाम नाम दुर्गा और कमला था. दादा साहेब की आखिरी मूक फिल्म ‘सेतुबंधन’ थी. भारतीय सिनेमा में दादा साहब के ऐतिहासिक योगदान के चलते 1969 से भारत सरकार ने उनके सम्मान में ‘दादा साहब फाल्के’ अवॉर्ड की शुरुआत की गई थी. आपको बता दें कि दादा साहब फाल्के पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है.