Friday, April 19, 2024
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Opposition Parties Of Uttar Pradesh Wants To Create Alliance Through Rakesh Tikait For Upcoming Up Election 2022 – टिकैत के मार्फत योगी के किले को भेदने की तैयारी, 2022 में योगी को टक्कर देने की रणनीति

एक रात और टिकैत के आंसुओं का सैलाब, इसने न केवल किसान आंदोलन को दोबारा से मंच प्रदान कर दिया, बल्कि उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों को भी आशा की एक नई किरण दिखा दी। महज सात-आठ घंटे में राकेश टिकैत को लेकर कई राजनीतिक दलों की समझ बदलने लगी। जिस तरह से गाजीपुर में टिकैत के मंच पर विभिन्न पार्टियों के नेताओं का जमावड़ा लगा, तो यह कहा जाने लगा कि हाथी के पांव में सबका पांव।

जेएनयू में समाजशास्त्र विभाग के पूर्व प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. आनंद कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल टिकैत की मार्फत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के किले घेरने के लिए नए समीकरण बनाने में जुटे हुए हैं। बशर्ते वे अनुशासन और साफ मन से किसानों की मदद करें। अगर इन नए समीकरणों पर प्रभावी तरीके से काम हो जाता है, तो 2022 में भाजपा के फायर ब्रांड मुख्यमंत्री ‘योगी’ को कड़ी टक्कर दी जा सकती है।

26 जनवरी को लाल किला की घटना के बाद जब चारों तरफ से किसान आंदोलन को दबाने की कोशिशें हुई, तो एक बारगी लगा था कि अब यह आंदोलन इतिहास बनकर रह जाएगा। गुरुवार 28 जनवरी की रात गाजीपुर बॉर्डर पर रोते हुए राकेश टिकैत ने जब भावनात्मक अपील की तो वहीं से किसान आंदोलन ने पलटी मार दी। नतीजा, पुलिस की हिम्मत नहीं हो सकी कि वह राकेश टिकैत को गिरफ्तार कर ले।

अगले दिन यानी 29 जनवरी को गाजीपुर धरना स्थल पर किसानों की संख्या दोबारा से अच्छी खासी हो गई। इतना ही नहीं, रालोद नेता जयंत चौधरी सबसे पहले टिकैत के पास जाकर बैठ गए। जयंत और आप सांसद संजय सिंह, राकेश के बड़े भाई नरेश टिकैत द्वारा मुजफ्फरनगर में आयोजित किसान महापंचायत में जा पहुंचे। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी फोन कर राकेश टिकैत का हालचाल पूछ लिया।

इससे पहले उसी रात को कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी अपने ट्वीट के जरिए राकेश टिकैत का समर्थन कर दिया था। उसके बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तो टिकैत की बगल में जा बैठे। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र एवं राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा भी राकेश टिकैत के मंच पर जा बैठे। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पीछे नहीं रहे। वे भी टिकैत से मिलने के लिए गाजीपुर चले गए। किसान आंदोलन के कुछ प्रमुख साथी जैसे योगेंद्र यादव और दर्शनपाल ने धरना स्थल पर पहुंचकर संघर्ष की नई रणनीति का खुलासा कर दिया।

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. आनंद कुमार कहते हैं, आज सवाल धर्म या संस्कृति का नहीं है। सवाल जीवन का है, रोटी का है। ये नहीं है तो बाकी चीजें कहां काम आएंगी। वे तभी काम आ सकती हैं, जब जीवन बचेगा। केंद्र सरकार ने कहा था कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे। किसान देखेंगे कि आय दोगुनी होती है या नहीं। साठ दिन का आंदोलन जब टस से मस नहीं हुआ, तो लोगों में किसानों के प्रति भरोसा जाग उठा था। इसके बाद लाल किला की घटना हुई। आंदोलन को तोड़ने का प्रयास किया गया।

टिकैत की भावनात्मक अपील के बाद अब दोबारा से आंदोलन के प्रति लोगों का विश्वास बन रहा है। दूसरी तरफ लोगों को यह भी मालूम हो गया कि लालकिला पर हमला, दिल्ली की सीमा पर हो रहे प्रदर्शन में गुंडागर्दी और किसानों पर डंडा बजाना, इन सबके पीछे एक राजनीतिक दल का हाथ है।

मौजूदा हालात में विरोधी दलों के पास ताकत नहीं रही। बतौर आनंद कुमार, न्यायपालिका पर सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में अब आंदोलन की राह दिखती है। भाजपा को अहसास तो हो गया है कि भविष्य में विपक्षी दलों के बीच की दूरी घट सकती है। जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है, वहां विभिन्न राजनीतिक पार्टियों पर निर्भर करेगा कि वे किसान आंदोलन का सार्थक लाभ उठा सकती हैं या नहीं। इसमें पार्टियों का आचरण एक बड़ी भूमिका अदा करेगा। उन्हें अपनी धर्म या जातिगत समीकरणों से दूरी बनानी होगी।

वहीं यह भी देखने वाली बात होगी कि वे पार्टियां जरूरत के तौर पर किसानों की तरफ आ रही हैं, या पार्टनर बनकर उनके साथ चलेंगी। इसका बहुत ध्यान रखना होगा। किसानों का मन बहुत साफ है। उनके नाम पर या आड़ लेकर कोई गुंडागर्दी करे, उससे फर्क नहीं पड़ता। आज राकेश टिकैत कई राजनीतिक दलों के लिए ‘डूबते को तिनके का सहारा’ बन गए हैं। किसानों के पास मंच का अभाव है, जबकि राजनीतिक दलों के पास लोगों के भरोसे और विश्वास का। वे सब ईमानदारी और अनुशासन की भावना से किसानों के मंच पर आते हैं तो 2022 में योगी को कड़ी टक्कर दी जा सकती है।

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