Thursday, April 18, 2024
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लॉकडाउन के दौरान धारा 188 में दर्ज हुई सभी एफआइआर रद करने की मांग, जानें क्‍यों की गई मांग

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान आइपीसी की धारा 188 के तहत छोटे मोटे अपराधों में दर्ज सभी एफआइआर रद करने की मांग की गई है। साथ ही कहा गया है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत राज्यों को आदेश जारी कर कहे कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान धारा 188 में और छोटे मोटे अपराधों में शिकायत या एफआइआर न दर्ज न करे। यह याचिका उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी और गैर सरकारी संगठन सीएएससी के चेयरमैन विक्रम सिंह ने दाखिल की है।

पुलिस को गैरकानूनी कार्रवाई या लोगों से क्रूरता व लाठीचार्ज की छूट नहीं

याचिका में कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 195 और सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के पूर्व फैसलों के मुताबिक धारा 188 के तहत एफआइआर दर्ज नहीं की जा सकती। लाकडाउन के दौरान पुलिस को गैरकानूनी कार्रवाई या लोगों से क्रूरता व लाठीचार्ज की छूट नहीं दी जा सकती। याचिका में कहा गया है कि सेंटर फार एकाउंटबेलिटी एन्ड सिस्टेमेटिक चेंजेस (सीएएससी) द्वारा किये गए रिसर्च और एकत्रित आंकड़ों के मुताबिक 23 मार्च से 13 अप्रैल के बीच सिर्फ दिल्ली में 50 थानों में कुल 848 एफआइआर धारा 188 के तहत दर्ज हुई हैं।

समानता व जीवन के अधिकारों का उल्लंघन है यह धारा 

उत्तर प्रदेश सरकार की ट्वीटर पर की गई स्वीकृति के मुताबिक वहां धारा 188 के तहत 48503 लोगों के खिलाफ कुल 15378 एफआइआर दर्ज हुई हैं। ऐसे में यदि देश की राजधानी और उससे लगे राज्य में यह स्थिति है तो देश के अन्य भागों में क्या स्थिति होगी इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। धारा 188 के तहत एफआइआर दर्ज करना गैरकानूनी है और समानता व जीवन के अधिकारों का उल्लंघन है। कहा गया है कि एक तरफ कोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर जेलों से कैदियों को रिहा करने का निर्देश दे रहा है ताकि जेलों में भीड़ कम हो और दूसरी तरफ पुलिस छोटे मोटे अपराधों जिनमें छह महीने तक की जेल का प्रावधान है, में गैरकानूनी ढंग से एफआइआर दर्ज कर क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पर बोझ बढ़ा रही है।

कानून के मुताबिक हो कार्रवाई 

हालांकि याचिका मे कहा गया है कि वे इसमें लॉकडाउन उल्लंघन को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं वह सिर्फ इतना चाहते हैं कि कार्रवाई कानून के मुताबिक हो। जानबूझकर लाकडाउन का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानून के मुताबिक सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन जब पुलिस को बहुत शक्तियां दी जाएं तो जरूरी है कि कोर्ट उस बारे में आदेश पारित करे ताकि वह न्यायिक अनुशासन के तहत पूरे देश में समान रूप से लागू हो। विक्रम सिंह के वकील विराग गुप्ता का कहना है कि जन स्वास्थ्य प्रणाली को तो हम जल्दी ही ठीक कर लेंगे लेकिन अगर कानूनों के दुरुपयोग को संस्थागत मान्यता मिली तो संवैधानिक व्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा।

क्या कहती है आइपीसी की धारा 188 

  • यह धारा पब्लिक सर्वेन्ट के आदेश की अवहेलना पर सजा का प्रावधान करती है

  • इसमें अवज्ञा करने पर एक महीने तक की जेल और 200 रुपये जुर्माने का प्रावधान है।

  • अगर आदेश के उल्लंघन से मानवता या स्वास्थ्य व सुरक्षा को खतरा होता है तो सजा छह महीने तक की जेल और 1000 रुपये तक जुर्माना हो सकता है।

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