Thursday, April 25, 2024
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ईरान के उस पत्रकार का केस, जिसे ‘द्रोही’ कहकर मौत दी गई

ईरान के टीवी चैनलों की खबरों की मानें तो असंतुष्ट पत्रकार रूहोल्लाह ज़म (Ruohollah Zam) को शनिवार को सज़ा-ए-मौत दे दी गई., जो 2017 में ईरान में सरकार के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों (Iran Protests) के केंद्र में रहने के कारण सुर्खियों में आए थे. ईरान के सुप्रीम कोर्ट (Iranian Supreme Court) ने बीते हफ्ते ज़म के मुकदमे में मौत की सज़ा सुना दी थी. इससे पहले इस साल की शुरूआत में निचले कोर्ट ने भी ज़म को ‘Corruption on Earth’ आरोप में दोषी पाकर मौत की सज़ा सुनाई थी.

ईरान में ज़म को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद बवाल मचा हुआ है और एक बड़ा वर्ग इस तरह की न्याय प्रणाली की आलोचना कर रहा है. आइए आपको बताते हैं कि ज़म कौन थे और क्यों उन्हें फांसी दी गई. साथ ही यह भी कि ईरान का यह कानून क्या है, जो एक बार फिर चर्चा में आ गया है.

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ज़म के लाखों फॉलोअर और 2017 के प्रदर्शनसरकार के विरोध में एक न्यूज़ वेबसाइट अमाद न्यूज़ चलाने वाले ज़म ईरान के एक्टिविस्ट माने जाते रहे, जिनके टेलिग्राम एप पर चल रहे चैनल के लाखों फॉलोअर थे. 2017 में जब ज़म के संदेशों और न्यूज़ कवरेज के बाद विरोध प्रदर्शन भड़के थे, तब उनके पिता ने अपने बेटे यानी ज़म का समर्थन करने से मना किया था. अस्ल में ये बहुत बड़े पैमाने के विरोध प्रदर्शन थे.

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पत्रकारों के दमन के विरोध में ईरान में प्रदर्शन होते रहे हैं.

पिटी अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और नागरिकों के सामने रोज़गार के संकट के जो हालात बने थे, 2017 में ईरान सरकार के खिलाफ जो प्रदर्शन हुए थे, उसमें करीब 5000 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी और 25 लोग मारे गए थे. इन प्रदर्शनों के केंद्र में ज़म की वेबसाइट और ​टेलिग्राम फीड को माना गया था. ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी और सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खोमेनी के खिलाफ इतने बड़े प्रदर्शनों के बाद सरकार के खिलाफ लोगों को उकसाने का मुकदमा चला था.

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क्या है करप्शन ऑन अर्थ?
ईरान के क्रिमिनल कोड में ‘मोफ़सेद-ए-फ़िलअर्ज़’ कानून को अंग्रेज़ी में करप्शन ऑन अर्थ के तौर पर समझा जाता है, जिसे 1996 में सबसे पहले खोमेनी ने लॉंच किया था. 2012 में इस कानून में कुछ बदलाव किए गए थे. कोड के आर्टिकल 190 के तहत इस कानून के तहत मुकदमा तब चल सकता है जब किसी व्यक्ति से समाज की सुरक्षा को खतरा हो.

इस कानून का असली चेहरा ये है कि ये बागियों पर लगाम कसने के लिए है और उन्हें कानूनन मौत के घाट उतारने का ज़रिया है. आर्टिकल 284 के तहत इस कानून के तहत मौत की सज़ा तब मिल सकती है जब देश या उसकी सुरक्षा को खतरा हो, सरकार के खिलाफ अफवाह फैलाई जाए या नैतिक भ्रष्टाचार या देश के खिलाफ अनैतिक काम जैसे अपराध किए जाएं.

वास्तव में, ईरान में इस्लामिक रिपब्लिकन ने क्रांतिकारियों या विद्रोहियों को कुचलने के लिए इस कानून को हथियार बनाया और कई एक्टिविस्टों को जेल या फांसी की सज़ा दे दी गई. करीब 8000 लोग इस कानून की भेंट चढ़ चुके हैं, जिनमें से अधिकतर विपक्षी पार्टियों या फिर ​कथित आतंकवादी रहे हैं. अस्ल में, इस कानून को सीधे शब्दों में ‘इस्लामी शासन का विरोध’ या फिर ‘भगवान के दुश्मन’ के आरोपियों पर लगाया जाता है.

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ईरान का लहराता झंडा. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

ज़म को क्यों दी गई फांसी?
ज़म के खिलाफ़ ईरान की अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप करने, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, अमेरिका के साथ मिलकर ईरान के खिलाफ गुप्तचरी करने जैसे कई आरोप लगाए गए थे. इस साल जुलाई में ज़म को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा. जिस करप्शन ऑन अर्थ आरोप के तहत इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूहों के लोगों को फांसी दी जाती है, ज़म को भी उसी के तहत मौत की सज़ा दी गई.

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ज़म की फांसी पर प्रतिक्रिया?
दुनिया भर के मानवाधिकार समूहों और एक्टिविस्टों ने ज़म की फांसी पर सख्त ऐतराज़ जताया. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने कहा कि ‘1979 से ईरान में कम से कम 860 पत्रकारों को मौत दी गई है जिससे ईरान पत्रकारों का दमन करने वाला दुनिया का सबसे क्रूर देश बन गया है. वहीं, आरएसफ ने इसे खोमेनी के सिर हत्या कहते हुए ईरानी कानून का अपराध करार दिया. फ्रांस स​मेत कई समूहों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की.

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