चूंकि मुस्लिम मोहम्मद के किसी भी कार्टून को ईशनिंदा मानते हैं, तो ऐसे में मुस्लिम देशों ने फ्रांस के प्रोडक्ट्स का बॉयकॉट शुरू कर दिया है. फ्रांस ने हालांकि इस तरह की मुहिम को कुछ ‘कट्टर अल्पसंख्यकों’ की चालबाज़ी कहा है, लेकिन मामला गंभीर होता जा रहा है. सोशल मीडिया से लेकर मुस्लिम देश आधिकारिक तौर पर इस बारे में बयान जारी कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें :- Everyday Science : भाषा सीखने की चीज़ है या पैदाइशी काबिलियत?
कुवैत में करीब 60 संस्थाओं के गैर सरकारी कोऑपरेटिव संगठन ने बीते 23 अक्टूबर को बॉयकॉट फ्रांस को लेकर निर्देश जारी किए और कई स्टोर्स में फ्रेंच प्रोडक्ट्स का व्यापार बंद हो गया. दोहा में भी इस तरह की खबरें हैं तो कतर यूनिवर्सिटी ने फ्रांस के रवैये को इस्लाम के खिलाफ बताते हुए फ्रेंच सांस्कृतिक सप्ताह के कार्यक्रम को टाल दिया है. मुस्लिम देशों में फ्रांस और मैक्रों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कहां कैसी प्रतिक्रिया हो रही है?
मैक्रों के साथ तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन.
‘मैक्रों दिमागी इलाज करवाएं’
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने बयान जारी किया कि मैक्रों का मुस्लिमों और इस्लाम को लेकर रवैया बताता है कि उन्हें दिमागी इलाज की ज़रूरत है. ‘जिस देश में लाखों मुस्लिम रह रहे हैं, उसके प्रमुख को जब आस्था की स्वतंत्रता को लेकर ही समझ नहीं है तो और क्या कहा जाए?’
‘अभिव्यक्ति के नाम पर ईशनिंदा?’
कुवैत के विदेश मंत्री ने फ्रेंच टीचर की हत्या की निंदा की लेकिन यह भी कहा कि इस पर राजनीति करते हुए नफरत और नस्लवाद फैलाना ठीक नहीं है. उधर, सऊदी अरब स्थित 57 देशों के इस्लामिक संगठन ने पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों की प्रैक्टिस की निंदा करते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर आप किसी धर्म की या ईशनिंदा नहीं कर सकते.
‘ध्रुवीकरण की राजनीति न करें’
पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने भी इस बहस में कूदते हुए ट्वीट किया और कहा कि ऐसे समय में मैक्रों को हमदर्दी से काम लेना था, न कि ध्रुवीकरण की राजनीति करते हुए कट्टरता को बढ़ावा देना था. ‘यह नाज़ीवादी अप्रोच है, जो इस्लामोफोबिया फैलाने में यकीन रखती है.’ वहीं मोरक्को और जॉर्डन ने भी मोहम्मद के कार्टूनों के प्रकाशन पर ऐतराज़ जताया.
through encouraging the display of blasphemous cartoons targeting Islam & our Prophet PBUH. By attacking Islam, clearly without having any understanding of it, President Macron has attacked & hurt the sentiments of millions of Muslims in Europe & across the world.
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) October 25, 2020
फ्रांस ने कैसे किया डैमेज कंट्रोल
मुस्लिम देशों ने जिस तरह संगठित और आक्रामक तौर पर फ्रांस के प्रोडक्ट्स का बॉयकॉट किया, तो फ्रांस की मशीनरी को होश आया. फ्रांस के विदेश मंत्रालय और कूटनीतिज्ञों ने इस बॉयकॉट को वापस लिये जाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं, तो दूसरी तरफ, मैक्रों ने भी ट्विटर के ज़रिये यह संदेश दिया है कि वो ‘हेट स्पीच के पक्ष में नहीं हैं और मानवीय गौरव और यूनिवर्सल मूल्यों का समर्थन करते हैं.’ साथ ही, मैक्रों ने सभी संप्रदायों और शांति की भावना को मानने का भी संदेश दिया.
फ्रांस का रवैया समझना ज़रूरी
हत्या की एक घटना या कार्टूनों के प्रकाशनों को मैक्रों की हिमायत मिलने के कारण बात इतनी नहीं बढ़ी कि पूरा मुस्लिम वर्ल्ड फ्रांस के खिलाफ हो जाए और वो भी इतने पुरज़ोर तरीके से. रिपोर्ट्स के मुताबिक 60 लाख मुस्लिमों की आबादी वाले फ्रांस के बॉयकॉट के पीछे और भी कारण हैं.
ये भी पढ़ें :-
ओवैसी की AIMIM, क्या बिहार चुनाव के बाद बन जाएगी नेशनल पार्टी?
बिहार में जमकर भीड़ खींच रहे तेजस्वी के बारे में 10 खास बातें
* 1905 से सेक्युलर विचार अपनाने वाले फ्रांस ने पिछले कुछ समय से इस्लाम के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया. फ्रांस के मुस्लिमों को ‘काउंटर सोसायटी’ कहा जाता है और यह भी तथ्य है कि यूरोप में फ्रांस वह देश था, जिसने 2004 में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया.
* मैक्रों ‘इस्लाम में सुधार’ संबंधी बयान दे चुके हैं, जिन पर काफी तीखी प्रतिक्रिया हो चुकी है. यह फैक्ट भी कुछ कहता है कि 2012 से फ्रांस में मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने करीब 36 हमले किए हैं.
* इस्लाम के खिलाफ लामबंदी को 2022 चुनाव के मद्देनज़र मैक्रों की राजनीति भी माना जा रहा है. मैक्रों एक ऐसा कानून लाने की तैयारी में हैं, जिसके तहत विदेशी फंड से ट्रेंड इमाम फ्रांस में नहीं आ सकेंगे. यह भी प्रस्ताव है कि मस्जिदों को स्टेट फंडिंग मिले और टैक्स ब्रेक्स भी.
* मैक्रों खुद ‘इस्लाम के संकट’ में होने संबंधी बयान देते रहे हैं, तो उनके मंत्री भी ‘इस्लामी अलगाववाद’ और इस्लाम को केंद्र में रखकर फ्रांस के सामने ‘सिविल वॉर’ के खतरे होने जैसे बयान देते रहे हैं.
फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों.
कुल मिलाकर, फ्रांस पर फासीवादी रवैया, नस्लवादी बर्ताव और राजनीतिक फायदे के लिए वैश्विक मूल्यों की अनदेखी के आरोप हैं, तो दूसरी तरफ, फ्रांस अपनी सेक्युलर, लोकतांत्रिक छवि को बचाने और कारोबारी नुकसान के खतरे को टालने में लग चुका है. नफरत की आग कैसे और कब तक बुझेगी, यह देखना होगा.