इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक पार्टी छोड़कर या तो बीजेपी में शामिल हो रहे हैं या फिर जजपा का जाप कर रहे हैं. ऐसे में अभय चौटाला के सामने न सिर्फ टूटती पार्टी को संगठित करने की चुनौती है बल्कि साल 2019 के विधानसभा चुनाव में इनेलो की पुरानी छाप छोड़ने की भी जरुरत है.
कुनबे की महाभारत से इनेलो पर संकट
अभय चौटाला पर भाई और भतीजों को पार्टी से बाहर करने का आरोप है. दरअसल, चौटाला परिवार के भीतर उपजा सत्ता का संघर्ष तब सतह पर आ गया जब ओमप्रकाश चौटाला ने तिहाड़ के भीतर से ही अपने बेटे अजय और पोते दुष्यंत-दिग्विजय चौटाला के निष्कासन का फरमान सुना दिया.चौटाला परिवार की महाभारत की पटकथा तिहाड़ जेल में तैयार हुई और सोनीपत की रैली को कुरुक्षेत्र में बदल गई. दरअसल, सोनीपत में इनेलो की रैली में भीड़ के एक हिस्से ने अभय चौटाला के खिलाफ नारेबाज़ी की थी. जिस पर ओमप्रकाश सिंह चौटाला नाराज़ हो गए थे. जुनियर बेसिक टीचर भर्ती घोटाले में जेल में बंद ओमप्रकाश चौटाला ने दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से निकाल दिया और इनेलो के युवा मोर्चे को भी भंग कर डाला. इसके दो सप्ताह बाद उन्होंने बेटे अजय सिंह चौटाला की इनेलो की प्राथमिक सदस्यता रद्द कर दी.
परिवार टूटा तो पार्टी भी टूटी. आरोप अभय सिंह चौटाला पर लगे. लेकिन अभय चौटाला कहते हैं कि परिवार में मनमुटाव की बात सरासर गलत है और भतीजों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई है.
राज्य में खेलों के विकास के लिए कई काम किए
अभय चौटाला का जन्म सिरसा में हुआ था. हरियाणा की कृषि यूनिवर्सिटी से उन्होंने आर्ट्स में ग्रेजुएट किया है. खेलों के प्रति उनका बचपन से ही लगाव रहा है. उन्होंने 8 बार राष्ट्रीय वॉलीबॉल चैम्पियनशिप में हरियाणा का प्रतिनिधित्व किया और कई पदक जीते.
साल 2000 में अभय चौटाला ने रोरी विधानसभा सीट पर इनेलो के टिकट से जीत हासिल कर राजनीतिक पारी का आगाज़ किया. अभय चौटाला ने चुनाव जीतने के बाद अपना चुनावी वादा भी पूरा किया और अपने विधानसभा क्षेत्र में जननायक चौधरी देवीलाल मेमोरियल इंजीनियरिंग कॉलेज बनवाया. साल 2005 में सिरसा के जिला परिषद के अध्यक्ष बने. साल 2009 में इलेनाबाद विधानसभा सीट पर उप-चुनाव जीता.
साल 2014 के विधानसभा चुनाव में वो दोबारा निर्वाचित हुए और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने. साल 2014 में मोदी लहर के बावजूद लोकसभा चुनाव की 2 सीटें जीतने पर उनकी रणनीति की तारीफ हुई. अभय चौटाला के लिए कहा जाता है कि शिक्षा, खेल और आधारभूत ढांचे के निर्माण में उन्होंने जमकर काम किया है. अभय चौटाला ने ही राज्य में खेलों और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में स्पोर्ट्स कोटा की शुरुआत की. साथ ही अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को लुभावने प्राइज देने और खिलाड़ियों को डाइट अलाउंस देने का श्रेय भी अभय चौटाला को जाता है.
क्या हरियाणा में लौटेगा चौटाला-राज?
एक वक्त था जब हरियाणा के चुनाव में जाटों के सारे वोट पहले इनेलो को मिलते थे और उसके बाद बीजेपी-कांग्रेस में बंटते थे. लेकिन अब बदले सियासी समीकरणों में जाट वोटर्स को कन्फ्यूज़ करने के हालात बन चुके हैं. ऐसे में जाटों की राजनीति करने वाली इनेलो के सामने अबकी बार लड़ाई आसान नहीं है. यही वजह है कि अब अभय चौटाला और इनेलो के लिए ये निर्णायक जंग है. अभय चौटाला ने अपने दोनों बेटे कर्ण और अर्जुन को पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया है. राजनीति के इस महाभारत में हरियाणा की राजनीति में तकरीबन 30 साल तक राज करने वाली बंसीलाल-भजनलाल-देवीलाल की तीसरी पीढ़ी बदलाव के दौर से गुज़र रही है.