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ये क़िस्सा 21 नवंबर 1971 का है. भारत-पाकिस्तान युद्ध की औपचारिक शुरुआत होने में 11 दिन बाकी थे. दो दिन पहले ही ‘4 सिख रेजिमेंट’ के सैनिक कुछ टैंकों के साथ पूर्वी-पाकिस्तान में चौगाचा क़स्बे की तरफ बढ़ गए थे.
एक कंपनी टैंकों पर सवार थी और उसके पीछे तीन और कंपनियाँ चल रही थीं. पाकिस्तान की ‘107 इन्फ़ैंट्री ब्रिगेड’ के सैनिक इनसे उलझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन भारतीय सैनिक पूरे जोश में थे. स्थानीय लोग उनका ‘जोय बाँग्ला’ के नारे के साथ स्वागत कर रहे थे और 4 सिख का नारा ‘जो बोले सो निहाल’ भी रह-रह कर गूँज उठता था.
कुल मिलाकर हॉलीवुड की फ़िल्म ‘बैटल ऑफ़ द बल्ज’ जैसा कुछ दृश्य बन पड़ा था. शाम तक भारतीय सैनिक चौगाचा में कबाडक नदी के किनारे पर पहुँच चुके थे. 4 सिख के टैंकों के साथ चल रही डी-कंपनी ने पुल तक पहुँचने की पूरी कोशिश की, लेकिन इससे पहले कि वो वहाँ तक पहुँच पाते पाकिस्तानियों ने वो पुल उड़ा दिया था.
पुल के पश्चिमी किनारे पर बालू में एक भारतीय टैंक फंस गया था और उसे निकालने की सारी कोशिश बेकार गई थी.


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चार सेबर जेट्स ने हमला बोला
4 सिख रेजिमेंट के एडजुटाँट कैप्टन एचएस पनाग जो भारतीय सेना में लेफ़्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए, अपनी हाल में प्रकाशित क़िताब ‘द इंडियन आर्मी, रेमिनिसेंसेस, रिफ़ॉर्म्स एंड रोमाँस’ में लिखते हैं, “22 नवंबर को जैसे ही धुंध छटी, पाकिस्तानी वायुसेना के चार सेबर जेट्स ने 4 सिख के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिये. उनकी कोशिश थी कि उड़ाए गये पुल के पास फँसे भारतीय टैंक को किसी तरह बर्बाद किया जाये.”
“हम बार-बार अपनी वायुसेना से एयर-कवर की माँग कर रहे थे, लेकिन हमारी माँग इसलिए नहीं मानी जा रही थी, क्योंकि युद्ध का औपचारिक ऐलान नहीं हुआ था. हम हल्के हथियारों जैसे लाइट मशीनगन और मशीन गनों से ही इन विमानों पर गोलियाँ चला रहे थे.”


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कुछ ही मिनट में सेबर्स से लड़ने पहुँचे नैट विमान
उसी समय दमदम हवाई ठिकाने पर फ़्लाइंग ऑफ़िसर डॉन लज़ारुस फ़्लाइंग ऑफ़िसर सुनीथ सुआरेस के साथ स्क्रैबल खेल रहे थे.
2 बजकर 37 मिनट पर दमदम एयरबेस का सायरन बजने लगा. लज़ारुस और सुआरेस ने स्क्रैबल का खेल छोड़ अपने नैट विमानों की तरफ़ दौड़ लगाई.
दूसरी तरफ़ फ्लाइट लेफ़्टिनेंट रॉय मैसी और एमए गणपति भी अपने विमानों की तरफ़ दौड़े.


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फ़्लाइट लेफ्टिनेंट रॉय मैसी, एम ए गणपति, फ़्लाइंग ऑफिसर डॉन लज़ारुस (बांए से)
जहाँ 4 सिख पर पाकिस्तानी सेबर जेट हमला कर रहे थे, वो इलाक़ा दमदम एयरबेस से क़रीब 50 मील उत्तर-पूर्व में था. वहाँ इन चारों नैट विमानों को पहुँचने में 8 से 9 मिनट लगे. उधर कैप्टन पनाग अपने ठिकानों पर रसद का मुआएना कर अपनी जीप से लौट रहे थे.
पनाग याद करते हैं, “मैंने देखा क़रीब 3 बजे तीन सेबर्स 1800 फ़ीट की ऊँचाई पर गए और फिर अपने बम गिराने के लिए 500 फ़िट की नीचाई तक आए. तभी मेरी नज़र चार विमानों की तरफ़ गई जो पूर्व से आकर पेड़ की ऊँचाई पर उड़ते हुए मेरे ऊपर से निकल गए. वो इतनी तेज़ी से गए कि मेरी जीप डगमगा गई.”
“एक क्षण के लिए मुझे लगा कि कहीं पाकिस्तानी वायुसेना ने हमें रोकने के लिए अपनी पूरी स्कवार्डन तो नहीं झोंक दी, लेकिन तभी चारों युद्धक विमान फ़ॉर्मेशन से अलग हो गए और एक एक सेबर विमान के पीछे लग गए. सेबर्स को पता ही नहीं चला कि नैट लड़ाई के मैदान में कूद पड़े हैं, लेकिन मुझे इसका अंदाज़ा हो गया और मैं जीप रोक कर ये हवाई लड़ाई देखने लगा.”


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भारतीय युद्धक विमान नैट
मैसी ने पहला बर्स्ट फ़ायर किया
जाने-माने वायु सैन्य इतिहासकार पीवी एस जगनमोहन और समीर चोपड़ा अपनी क़िताब ‘ईगल्स ओवर बांग्लादेश’ में लिखते हैं, “सबसे पहले सेबर्स पर सुआरेस की नज़र पड़ी जो उनसे सबसे दूर थे. मैसी और गणपति उनसे डेढ़ किलोमीटर दूर फ़ाइटिंग पोज़ीशन में उड़ रहे थे. सुआरेस रेडियो पर चिल्लाए ‘कॉन्टैक्ट’ और फिर कोडवर्ड में बोले ‘गाना डॉनी’ यानी सेबर आपके दाहिने 4000 फ़ीट की ऊँचाई पर है, लेकिन गणपति को तब भी सेबर नहीं दिखाई दिया. सुआरेस फिर रेडियो पर चिल्लाए, ‘एयरक्राफ़्ट एट टू ओ क्लाक, मूविंग टू वन ओ क्लाक, 3 किलोमीटर्स अहेड.”
इस बीच मैसी ने सेबर को देख लिया और उन्होंने 800 गज़ की दूरी से सेबर पर अपनी कैनन से पहला बर्स्ट फ़ायर किया.


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लज़ारुस ने 150 गज़ की दूरी से सेबर को निशाना बनाया
उन चार में से एक नैट से हमला कर रहे फ़्लाइंग ऑफ़िसर लज़ारुस को जो इस समय मलेशिया में रह रहे हैं, वो लड़ाई अभी तक याद है – जैसे वो कल की ही बात हो.
लज़ारुस बताते हैं, “तभी मेरी नज़र तीसरे सेबर पर गई. मैंने उसके पीछे अपना नैट लगा दिया. मैंने 150 गज़ की दूरी से उस पर फ़ायर किया. ये छोटा बर्स्ट था. मेरी कैनन से सिर्फ़ 12 राउंट निकले होंगे कि सेबर में आग लग गई. मैं रेडियो पर चिल्लाया ‘आई गॉट हिम! आई गॉट हिम!’ मेरे नैट के रास्ते में ही सेबर में विस्फोट हुआ. विस्फोट मेरे इतने पास था कि सेबर के मलबे के कुछ हिस्से मेरे नैट से टकराए और उसकी ‘नोज़ कोन’ और ‘ड्रॉप टैंक्स’ से चिपक गए.”


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फ़्लाइंग ऑफ़िसर डॉन लज़ारुस
उधर मैसी ने जब अपना दूसरा बर्स्ट फ़ायर किया तो उनकी कैनन जाम हो गई. लेकिन उनका तीसरा बर्स्ट सेबर के ‘पोर्ट विंग’ में लगा और उसमें से धुआँ निकलने लगा. मैसी ने अपने रेडियो पर विमान गिराने का कोडवर्ड बोला, ‘मर्डर, मर्डर.’
पनाग ने पाकिस्तानी पायलट को पिटने से बचाया
उधर ज़मीन पर ये नज़ारा देख रहे कैप्टन पनाग ने देखा कि दो सेबर जेट नीचे गिर रहे हैं और उनमें दो पैराशूट खुल गए हैं और वो उनके सैनिकों की तरफ़ आ रहे हैं.
पनाग याद करते हैं, “हमारे सैनिक अपने बंकरों से निकल कर गिरते हुए पैराशूट की तरफ़ दौड़े. मुझे लगा कि लड़ाई के जोश में हमारे जवान पाकिस्तानी पायलट को नुकसान पहुँचा सकते हैं. पहले मैंने उस तरफ़ अपनी जीप दौड़ाई और फिर जीप रोक कर जितनी तेज़ दौड़ सकता था उस तरफ़ दौड़ा. मैं जब उनसे 50 गज़ दूर था, मैंने देखा कि हमारे जवानों ने पायलट को गिरा दिया है और उसे राइफ़ल बट से पीट रहे हैं. मैंने चिल्ला कर उन्हें रुकने के लिए कहा. जब मैं वहाँ पहुँचा तो पायलट की पिटाई हो रही थी. मैंने उसके सामने खड़े होकर अपने जवानों से उसे बचाया.”


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भारतीय वायु सेना द्वारा पाकिस्तानी सेबर जेट्स को ध्वस्त करने की तस्वीर
बटुए में पत्नी की तस्वीर
उस पायलट को मार्च कराकर बटालियन हेडक्वार्टर लाया गया.
पनाग बताते हैं, “मैंने पायलट के माथे पर लगी चोट की मरहम-पट्टी करवाई और उसके लिए चाय मंगवाई. उस पायलट का नाम था फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट परवेज़ मेंहदी क़ुरैशी. वो लंबे कद के हैंडसम सैनिक थे. उनका क़द 6 फ़िट से ऊपर रहा होगा. वो पहले थोड़े से घबराए हुए थे क्योंकि उनके साथ थोड़ी मारामारी हो गई थी. लेकिन बाद में वे बहुत हौसले के साथ पेश आये. वे ढाका स्थित पाकिस्तानी वायु सेना की 14वीं स्कवार्डन के स्कवार्डन कमांडर थे और उन्हें पाकिस्तान एयरफ़ोर्स अकादमी से ‘स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर’ यानी सर्वश्रेष्ठ वायु सैनिक का ख़िताब मिला था.”
“मैंने उनके बटुए की तलाशी ली. उसमें उनकी पत्नी की तस्वीर थी. मैंने उन्हें वो तस्वीर अपने पास रखने के लिए दे दी. फिर मैंने उनके पास मिले सामान की लिस्ट बनाई जिसमें उनकी एक घड़ी, 9 एमएम की पिस्टल, 20 राउंड गोलियाँ और उनकी ‘सर्वाइवल किट’ थी. मैंने उनसे कहा कि अब आप युद्धबंदी हैं और आपके साथ जिनेवा समझौते के तहत सलूक किया जाएगा. जब उनको हमारे ब्रिगेड मुख्यालय ले जाया जा रहा था तो उन्होंने एक शब्द नहीं कहा, लेकिन उनकी आँखों से मैं साफ पढ़ पा रहा था – जैसे वो मुझे शुक्रिया अदा करना चाह रहे हों.”


लेफ्टिनेंट जनरल पनाग के साथ बीबीसी संवाददाता रेहान फ़ज़ल
इस घटना के अगले दिन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल याहया ख़ाँ ने पाकिस्तान में आपातकाल की घोषणा कर दी.
इसके दो दिन बाद 25 नवंबर को उन्होंने बयान दिया, “दस दिनों के भीतर हमारी सेनाएं भारत से युद्ध लड़ रही होंगीं.”
दमदम एयरबेस पर पायलटों का अभूतपूर्व स्वागत
ये पूरी हवाई लड़ाई सिर्फ़ दो या ढ़ाई मिनट में ख़त्म हो गई थी. जब भारतीय नैट विमान दमदम हवाईअड्डे पर उतरे तो उनका स्वागत करने के लिए पूरा एयरबेस पहुँचा हुआ था.
लज़ारुस याद करते हैं, “हमारे फ़ॉर्मेशन का कॉल साइन था – कॉकटेल. उन्होंने पूछा ‘कॉकटेल 1?’ उन्होंने कहा, ‘मर्डर, मर्डर’ जिसका मतलब था कि उसने एक विमान गिरा दिया है. कॉकटेल-2 ने कहा ‘निगेटिव.’ कॉकटेल-3 ने कहा, ‘मर्डर, मर्डर’ और मैंने भी कहा, ‘मर्डर, मर्डर.’ ये जानकारी हमारे उतरने से पहले उन तक पहुँच गई थी.”
“जब हम वहाँ उतरे तो हमारे विमान को लोगों ने चारों तरफ़ से घेर लिया. सामान्यत: पायलट सीढ़ी से नीचे उतरता है. नैट विमान बहुत छोटा होता है. आमतौर से हम उससे कूद कर नीचे उतरते हैं, लेकिन उस दिन हमें नीचे नहीं उतरने दिया गया. हमें हमारे साथियों ने अपने कंधे पर बैठा कर नीचे उतारा.”


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डॉन लज़ारुस ग्रुप कैप्टन के पद से 1992 में रिटायर हुए
इसके बाद वो पायलट सबके हीरो बन गए और वो जहाँ-जहाँ भी गए लोगों ने उन्हें घेर लिया. भारतीय वायु सेनाध्यक्ष एयर चीफ़ मार्शल पीसी लाल इन वायु सैनिकों को बधाई देने ख़ासतौर से कोलकाता गए.
उन्होंने कहा. “हमने वास्तविक युद्ध शुरू होने से पहले ही हवाई लड़ाई जीत ली.”
कुछ दिनो बाद रक्षा मंत्री जगजीवन राम और पूर्वी वायु सेना कमान के प्रमुख एयर मार्शल देवान भी इन चार पायलटों, फ़्लाइट कंट्रोलर के बी बागची और उनके कमांडिंग ऑफ़िसर को बधाई देने ख़ासतौर से दमदम एयरबेस आए.
उन्होंने इन सबको फूल माला पहनाई और नैट विमान पर चढ़कर इनके साथ तस्वीर खिंचवाईं.


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भारतीय पायलटों का स्वागत करते तत्कालिन रक्षा मंत्री जगजीवन राम.
परवेज़ कुरैशी मेहदी बने पाकिस्तानी वायु सेनाध्यक्ष
इस लड़ाई में भाग लेने वाले पायलटों मैसी, गणपति और लज़ारुस और फ़्लाइट कंट्रोलर बागची को वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट परवेज़ कुरैशी मेहदी डेढ़ साल तक ग्वालियर में युद्धबंदी के तौर पर रहे.
साल 1997 में परवेज़ कुरैशी को पाकिस्तानी वायुसेना का अध्यक्ष बनाया गया.
इस पद पर वे तीन वर्षों तक रहे. जब 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान यात्रा पर गए तो प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने उनका परिचय वाजपेयी से करवाया.


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बाद में ये ख़बरे आईं कि कारगिल युद्ध के मुद्दे पर उनके तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ से मतभेद हो गए थे और उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना को कारगिल युद्ध में शामिल करने से इनकार कर दिया था.
एयर मार्शल मेहदी की कॉकपिट सीट, उनका पैराशूट और सेबर विमान के कुछ हिस्से अभी भी 4 सिख के मुख्यालय पर यादगार के तौर पर रखे हुए हैं.
मेंहदी 1971 की लड़ाई के पहले युद्धबंदी थे और 4 सिख के कैप्टन एचएस पनाग ने उन्हें युद्धबंदी बनाया था.
कैप्टन पनाग भारतीय सेना में लेफ़्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए. इससे पहले वो उत्तरी और मध्य कमान के जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग इन चीफ़ भी रहे.