चीन ने जब यह पोस्ट की, तो ऑस्ट्रेलिया ने इसे घिनौना और आपत्तिजनक बताते हुए चीन से माफी मांगने की बात कही. जवाब में चीन ने कहा माफी का सवाल ही नहीं है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया को अपनी सेना की इस क्रूरता के लिए शर्मिंदा होना चाहिए. दोनों देशों के बीच पहले ही रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं इसलिए यह मुद्दा बड़ा हो गया. खबरें ये भी हैं कि जो तस्वीर चीन ने पोस्ट की, वह छेड़छाड़ से बनाई गई. बहरहाल, चीन ने इस इमेज के साथ ‘अफ़गान लाइव्स मैटर’ का मुद्दा भी उठाया है. इसके बारे में आप क्या जानते हैं?
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Shocked by murder of Afghan civilians & prisoners by Australian soldiers. We strongly condemn such acts, &call for holding them accountable. pic.twitter.com/GYOaucoL5D
— Lijian Zhao 赵立坚 (@zlj517) November 30, 2020
ब्लैक लाइव्स मैटर से अफ़गान लाइव्स मैटर तक
ईरान की ज़मीन पर अफ़गानी माइग्रेंट लोगों के साथ होने वाले नस्लभेद से यह आंदोलन और शब्द जन्मा. इस आंदोलन के ज़रिये एक्टिविस्टों ने कुछ दशकों से अफ़गानियों के साथ हो रहे भेदभाव और हिंसा की तरफ दुनिया का ध्यान खींचने की कोशिश की. इस आंदोलन के पीछे अमेरिकी अफ्रीकी लोगों के चर्चित आंदोलन की प्रेरणा है.
इसी साल 2 मई को अफ़गानिस्तान का दावा था कि दर्जनों माइग्रेंटों को ईरानी सीमा बल ने डुबो दिया था. विरोध प्रदर्शन तो हुए लेकिन ये असरदार नहीं रहे. इसके एक महीने बाद कथित तौर पर ईरान पुलिस की गोलियों से जली एक कार की तस्वीर वायरल हुई, जिसमें अफ़गानी माइग्रेंट थे. खबरों की मानें तो इस वीडियो में झुलसे हुए अफ़गानियों के दर्दनाक दृश्य थे और एक जला हुआ आदमी पानी मांगता दिख रहा था.
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यहां से आंदोलन का चेहरा तैयार हुआ. अमेरिका में अफ्रीकी अमेरिकी की मौत के बाद ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन जारी था, जिसमें ‘आई कैन नॉट ब्रीद’ स्लोगन काफी संवेदना हासिल कर रहा था. इसी तर्ज़ पर ‘अफ़गान लाइव्स मैटर’ आंदोलन की रूपरेखा बनी, जिसकी कैचलाइन ‘आई एम बर्निंग’ रखी गई. कुल मिलाकर, एक्टिविस्टों ने इस आंदोलन से यह संदेश दिया कि दुनिया के कई हिस्सों में सिर्फ नस्ल के फर्क के कारण लोग बुरी तरह मारे जा रहे हैं.
इंस्टाग्राम पर AyshGlamm Makeup Academy ने यह इमेज साझा की थी.
BLM से प्रेरित आंदोलन ALM को लोगों का समर्थन भी उसी तरह मिला, जिस तरह ‘ब्लैक्स’ के आंदोलन को मिला. यहां तक कि ईरान ही नहीं, बल्कि दुनिया के और मुल्कों में या और नस्लों के हाथों अफ़गानियों को जो भेदभाव और हिंसा झेलना पड़ रही है, उसके खिलाफ अफ़गानिस्तान के कई समुदाय इस आंदोलन से जुड़े और अब इसे अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिलता दिख रहा है.
क्या हैं चीन के समर्थन के मायने?
ऑस्ट्रेलिया को जवाब देने की कवायद में चीन ने ‘अफ़गान लाइव्स मैटर’ के स्लोगन को इस्तेमाल तो किया, लेकिन वास्तव में अफ़गानिस्तान में शांति और दोस्ती के लिए चीन कितना प्रतिबद्ध है, इसका कोई सबूत नहीं मिला है. अंतर्राष्ट्रीय खबरों से बन रहे परिदृश्य को देखा जाए तो चीन अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत अफ़गानिस्तान के संसाधनों का दोहन करने की नीति अपनाता हुआ दिख रहा है.
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लेकिन, चीन ने अगर इस नीति की स्पष्ट तौर पर घोषणा की तो उसे मुश्किल यह हो सकती है कि अफ़गानियों के पक्ष में उसे ईरान के खिलाफ जाना पड़ा सकता है, जहां चीन ने भारी निवेश कर रखा है. अमेरिका के साथ ईरान के रिश्ते बिगड़ने के बाद चीन ने यहां अपना वर्चस्व जमाने की कवायद की है. फ़िलहाल यह केवल ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ धाक जमाने चीन का एक हथकंडा है.
इस हथकंडे से अफ़गानिस्तान का क्या भला होगा, यह तो समय बताएगा लेकिन चीन अपने देश में ज़रूर हीरो बन गया है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के ट्वीट को ट्विटर ने ‘सेंसिटिव कंटेंट’ की श्रेणी में रखा, इसके बावजूद इसे 6655 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया जा चुका है. दूसरी तरफ, न्यूज़ीलैंड ने इस ट्वीट पर चिंता जताते हुए आशंका जताई है कि चीन ने ‘छेड़छाड़ की हुई तस्वीर’ पोस्ट की.
ब्लैक लाइव्स मैटर के सिलसिले में एशिया व ऑस्ट्रेलिया में हुए प्रदर्शनों में यह संदेश दिया गया कि ‘हर जान की कीमत’ है. (चित्र टीआरटी वर्ल्ड से साभार)
क्या वाकई ऑस्ट्रेलिया ने अफ़गानिस्तान में ज़्यादती की?
चीन जिस मुद्दे पर भिड़ गया है और ऑस्ट्रेलिया जिस मुद्दे पर बैकफुट पर दिख रहा है, उसकी वजह ऑस्ट्रेलियाई आर्मी के मेजर जनरल पॉल ब्रियरटन की एक रिपोर्ट है जिसमें कहा गया कि ऑस्ट्रेलियाई आर्मी ने कम से कम 39 निहत्थे अफ़गानी नागरिकों को बेवजह और बेदर्दी से कत्ल किया. इस रिपोर्ट के बाद से हंगामा मचा हुआ है और ऑस्ट्रेलियाई आर्मी को ‘वॉर क्राइम’ का ज़िम्मेदार बताया जा रहा है.
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कम से कम 13 ऑस्ट्रेलिया सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. ऑस्ट्रेलिया ने इस रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ एक खास जांच और उसके बाद सज़ा तय किए जाने के लिए कमेटी बनाई है. वहीं, अफ़गानिस्तान ने इस रिपोर्ट का स्वागत करते हुए कहा कि विशेष सुरक्षा बलों के सैनिकों की ऐसी करतूतें बख्शने लायक नहीं हैं. खबरों की मानें तो इस मामले में ऑस्ट्रेलियाई पीएम ने अफ़गानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी को फोन कर माफी भी मांगी.